जांजगीर-चांपा।. जिले के सरकारी अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञों की भारी कमी है। जिले में १३ स्त्री रोग विशेषज्ञ के पद शासन से मंजूर हैं मगर १२ पद खाली है। जिला अस्पताल की बात छोड़ दे तो, जिले के सरकारी अस्पतालों में मेडिकल ऑफिसरों के भरोसे व्यवस्था चल रही है। यहां आने वाले मरीजों को केवल नार्मल जचकी की ही सुविधा मिल पा रही है जबकि सिजेरियन ऑपरेशन करा पाने में सरकारी अस्पताल फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
एकमात्र जिला अस्पताल में ही सिजेरियन ऑपरेशन की संख्या अधिक है। जहां महीनेभर में ५० से अधिक सिजेरियन प्रसव हो रहे हैं। इसके अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक और उप प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सिजेरियन प्रसव की स्थिति खराब है। यहां जचकी के क्रिटकिल मरीज आते ही रेफर कर दिए जाते हैं, जिसके कारण सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन प्रसव 5 प्रतिशत भी नहीं हो रहे। ऐसे में मरीजों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ रहा है, जिसका फायदा भी कुछ निजी अस्पताल उठा रहे हैं और यहां नार्मल डिलेवरी कराने के बजाए ज्यादातर सिजेरियन प्रसव कराए जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बता रहे हैं कि निजी अस्पतालों में जाने के बाद 40 प्रतिशत से अधिक प्रसव सिजेरियन ही हो रहे हैं। 60 प्रतिशत ही नार्मल जचकी हो रही है। जिले के सरकारी अस्पतालों में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ और गायनेकोलॉजिस्ट नहीं होने के कारण गर्भवती महिलाओं की सरकारी अस्पतालों में डिलवरी नहीं हो पा रही है, नार्मल डिलवरी तो करा रहे हैं, लेकिन ऑपरेशन की नौबत आने पर डॉक्टर हाथ खड़े कर देते हैं, लिहाजा मजबूरी में महिलाओं को प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ता है।
सरकारी में ३३२ तो निजी में १८६५ बच्चे ऑपरेशन से पैदा हुए
सरकारी और निजी अस्पताल में ऑपरेशन और सामान्य प्रसव कराने के मामलों में बड़ा अंतर है। जिले में अप्रैल से दिसंबर तक 19 हजार 271 प्रसव हुए हैं। इनमें 2 हजार 197 ऑपरेशन से हुए। जिसमें प्राइवेट में 1 हजार 865 प्रसव ऑपरेशन से हुए। जबकि सरकारी अस्पतालों में केवल 332 ही सिजेरियन प्रसव हुए। हालांकि इन निजी अस्पतालों में लोगों को स्मार्ट कार्ड से इलाज की सुविधा मिल रही है जिससे उन्हें पैसा नहीं देना पड़ रहा, लेकिन निजी अस्पतालों को इन प्रसव कराने के पीछे सरकार को प्रति केस 10 हजार रुपए से अधिक खर्च आ रहा है। वहीं स्वास्थ्य अधिकारी संस्थागत प्रसव की बढ़ती उपलब्धि में ही खुश हो रहे हैं।

जिले में सिजेरियन ऑपरेशन की स्थिति
सरकारी अस्पताल
नार्मल प्रसव सिजेरियन
19271 332
निजी अस्पताल
नार्मल प्रसव सिजेरियन
4145 1865

ऑपरेशन से जन्म होने पर दूसरे बच्चें के लिए सिजेरियन मजबूरी
डॉक्टरों के मुताबिक पहले गर्भ के दौरान ऑपरेशन से प्रसव होने पर महिलाओं को अधिक परेशानी होती है। ब्लडिंग अधिक होने की स्थिति में कमजोरी आ जाती है। नवजात बच्चों को दूध पिलाने में दिक्कत होती है। वहीं दूसरे बच्चे के जन्म के लिए भी ऑपरेशन मजबूरी बन जाती है। नार्मल प्रसव कराने में प्रसूता के जान जोखिम का खतरा रहता है।

इन कारणों से प्राइवेट अस्पतालों में सिजेरियन प्रसव के मामले हैं अधिक

१. सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों की कमी
वर्तमान में जिला अस्पताल में एक ही गायनोलॉजिस्ट डॉ. सप्तर्शी चक्रवर्ती ही पदस्थ हैं जिनके द्वारा सिजेरियन ऑपरेशन किए जा रहे हैं। मगर सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल में एक गायनोलॉजिस्ट होने से काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। वहीं निश्चेतना विशेषज्ञ भी एक ही पदस्थ हैं। ऐसे में डॉक्टरों के अवकाश पर जाने पर सिजेरियन ऑपरेशन जिला अस्पताल में भी कई बार बंद होने की नौबत आ जाती है जिसके कारण लोग निजी में जाने मजबूर होते हैं। इसका फायदा निजी अस्पताल उठाते हैं और सिजेरियन ऑपरेशन के लिए परिजनों को राजी कर देते हैं।

ऑपरेशन करने में स्मार्ट कार्ड में ज्यादा का पैकेज
सिजेरियन प्रसव के बढऩे के लिए एक कारण इसमें पैकेज ज्यादा होना हैं। निजी अस्पतालों में ऑपरेशन से प्रसव कराने पर स्मार्ट कार्ड से 18 हजार 500 रुपए और नॉर्मल डिलिवरी के लिए 10 हजार मिलते हैं। कार्ड नहीं होने पर लोगों को 18 से 20 हजार रुपए तक देने पड़ते हैं, जबकि सामान्य प्रसव पर उतने रुपए नहीं मिलते। ऐसे में कई अस्पताल संचालकों द्वारा क्रिटिकल केस बताकर ऑपरेशन को जरूरी बताते हैं।



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